Tuesday 17 October 2017

आरती का महत्व ,क्यों करते है आरती ? By Indian Tubes

आरती हिन्दू उपासना की एक विधि है। इसमें जलती हुई लौ या इसके समान कुछ खास वस्तुओं से आराध्य के सामाने एक विशेष विधि से घुमाई जाती है। ये लौ घी या तेल के दीये की हो सकती है या कपूर की। इसमें वैकल्पिक रूप से, घी, धूप तथा सुगंधित पदार्थों को भी मिलाया जाता है। कई बार इसके साथ संगीत (भजन) तथा नृत्य भी होता है।

मंदिरों में इसे प्रातः, सांय एवं रात्रि (शयन) में द्वार के बंद होने से पहले किया जाता है। प्राचीन काल में यह व्यापक पैमाने पर प्रयोग किया जाता था। तमिल भाषा में इसे दीप आराधनई कहते हैं।

मंदिर एवं घर में देव पूजा होने के बाद तीर्थ और प्रसाद के समान आरती ग्रहण करने का भी महत्व है। इस संदर्भ में विष्णुधर्मोत्तर पुराण कहता है-




यथैवोध्र्वगतिर्नित्यं राजन: दीपशिखाशुभा। दीपदातुस्तथैवोध्र्वगतिर्भवति शोभना।।

अर्थात् जिस प्रकार दीप-ज्योति नित्य ऊध्र्व गति से प्रकाशमान रहती है, उसी प्रकार दीपदान यानी आरती ग्रहण करने वाले साधक आध्यात्मिक दृष्टि से उच्चा स्तर पर पहुंचते हैं। इस संदर्भ में एक अन्य श्लोक देखें-

नीरांजन बर्लिविष्णोर्यस्य गात्राणि संस्पृशेत्। यज्ञलक्षसहस्त्राणां लभते सनातन फलम्।।

 परमात्मा के नीरांजन की ज्योति का स्पर्श जिनकी विविध इंद्रियो को होता है, उन्हें हजारों यज्ञ करने से उत्पन्न अक्षय पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। इसलिए आरती ग्रहण करने की विधि ज्ञात होना आवश्यक है।
यहाँ ध्यान दे-
   ***
               कर्पूरारती, कुर्वडी औक्षण तथा तेल के नीरांजन की आरती ग्रहण करना निषिद्ध है। देवता की महारती तथा घृत नीरांजन की आरती उतारने के बाद घृत की आरती ग्रहण की जा सकती है। एक बार आरती ग्रहण कर लेने के बाद वही आरती अन्य देवताओं पर नहीं उतारी जाती।

महारती उतारने के बाद नीरांजन की ज्योति पर दोनों हथेलियां किंचित समय रखकर विविध अवयवों को स्पर्श करना आरती ग्रहण की उपयुक्त विधि है। आरती ग्रहण के समय हथेली का स्पर्श मस्तक, आंख, नाक, कान, मुख, छाती, पेट, घुटने तथा पैर पर करना आवश्यक है। विशेष रूप से जहां जख्म, व्याधि या सूजन हो, ऐसे शरीरांगों पर आरती ग्रहण के समय हथेली का स्पर्श आरोग्यप्रद होता है।

 भगवान की आरती ग्रहण करते समय लहरें अधिक प्रमाण कारक
             बनती है। भगवान बुद्ध द्वारा प्रणीत किन्तु नए सिरे से प्रस्तुत जापानी रेकी शास्त्र और आरती ग्रहण में कुछ अंशों में साम्य है। हर रोज आरती ग्रहण करने वाले व्यक्ति का चेहरा एवं नेत्र तेज: पुंज बनते ही हैं, प्रत्युत उसके हाथ से कालांतर में अति प्रभावी वैश्विक लहरें भी प्रभावित होने लगती हैं। नीरांजन के लिए शुद्ध सात्विक घी एवं देव कपास की बत्ती का प्रयोग करने पर अधिकाधिक लाभ होता है।

 सामान्यतया पूजा के अंत में आराध्य भगवान की आरती करते हैं। आरती में कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। इन सबका विशेष अर्थ होता है। ऐसी मान्यता है कि न केवल आरती करने, बल्कि इसमें सम्मिलित होने पर भी बहुत पुण्य मिलता है। किसी भी देवता की आरती करते समय उन्हें तीन बार पुष्प अर्पित करने चाहियें। इस बीच ढोल, नगाडे, घड़ियाल आदि भी बजाये जाते है



No comments:

Post a Comment