Saturday 14 October 2017

सुप्रीम कोर्ट ने पटाखे बैन किए हैं, दिवाली की रौनक नहीं बीना पटाखे के !

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर बैन लगा दिया है. यानी इस बार दिल्ली और उसके आसपास वाले इलाकों में दिवाली की रौनक तो होगी. लेकिन पटाखों के धूमधड़ाके वाली कानफोड़ू आवाज, दमघोंटू धुंआ और दिवाली के दूसरे दिन पटाखों के जलने के बाद निकला ढेरों टन कूड़ा नहीं होगा. पटाखे चलाने पर कोई रोक नहीं है. लेकिन वो आपके आसपास बिकेंगे ही नहीं तो आप खरीदेंगे कैसे और खरीदेंगे नहीं तो चलाएंगे कैसे. हां, अगर आप पटाखे चलाने के इतने बड़े जुनूनी हैं कि आपने पहले से आलूबम, रॉकेट, अनार और चटाई बम स्टोर कर रखे हैं तो फिर अलग बात है. अगर स्टोर नहीं कर रखे हैं तो फिर आपको दिल्ली के बाहर मेरठ, मुरादनगर या जयपुर, हिसार से जाकर पटाखे खरीदने होंगे. सुप्रीम कोर्ट की कोशिश बस इतनी है कि पटाखे चलाने वालों को इतना हत्सोहित कर दिया जाए कि वो स्वच्छ हवा की कीमत आजिज आकर ही जान लें.

कई लोगों को जबरदस्ती की जागरुकता वाली पटाखों बिना दिवाली की कल्पना निराश कर सकती है. लेकिन प्रदूषण ने दिल्ली-एनसीआर की जो हालत कर रखी है उसके हिसाब से ये फैसला ठीक ही मालूम पड़ता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक साल बिना पटाखों वाली दिवाली मनाने में क्या हर्ज है. कम से कम एक बार देख लें कि बिन पटाखों वाली दिवाली से प्रदूषण पर कितना असर पड़ता है. सांस लेने लायक हवा बचाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को मानने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए. लेकिन दिवाली की चकाचौंध, त्योहार का जश्न, धार्मिक परंपरा और करोड़ों के कारोबार का हवाला देकर इस फैसले को दाएं-बाएं करके किसी भी तरह से टालने या पलटने की कोशिशें भी हो सकती हैं.



क्या दमघोंटू हवा की कीमत पर दिवाली का जश्न ठीक है?
पिछले साल दिवाली के दौरान दिल्ली-एनसीआर की हवा की क्वालिटी दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक की थी. दिल्ली के अलावा उत्तर भारत के कई शहरों की हवा इस हद तक प्रदूषित थी जो किसी स्वस्थ इंसान को बीमार करने के लिए काफी थी. हर साल बढ़ते प्रदूषण के आंकड़े भयावह होते जा रहे हैं. ऐसे में अगर कुछ सख्ती नहीं बरती गई तो दिल्ली जैसे शहरों को गैस चैंबर बनने से कैसे रोका जा सकेगा?
ऐसा नहीं है कि प्रदूषण की एकमात्र वजह पटाखे ही हैं. लेकिन दिवाली के बाद के प्रदूषण के लिए कुछ हद तक पटाखों से निकला धुंआ तो जिम्मेदार है ही. क्या त्योहार की रौनक सिर्फ पटाखों की तेज आवाज और दमघोंटू धुंआ से ही आएगी. इस पर जिम्मेदारी से सोचना होगा.
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